Monday, March 22, 2010

विधि* - एक लिटर पानी को गुनगुना सा गरम करें। उसमें करीब दस ग्राम शुद्ध नमक


डालकर घोल दें। सैन्धव मिल जाये तो अच्छा है। सुबह मे स्नान के बाद यह पानी

चौड़े मुँहवाले पाञ में, कटोरे में लेकर पैरों पर बैठ जायें। पाञ को दोनों

हाथों से पकड़ कर नाक के नथुने पानी में डुबो दें।

अब धीरे-धीरे नाक के द्धवारा श्वास के साथ पानी को भीतर खींचें और नाक से

भीतर आते हए पानी को मुँह से बाहर निकालते जायें। नाक को पानी में इस प्रकार

बराबर डुबोये रखें, जिससे नाक द्धवारा भीतर जानेवाले पानी के साथ हवा न

प्रवेश करे। अन्यथा आँतरस-खाँसी आयेगी।

इस प्रकार पाञ का सब पानी नाक द्धवारा लेकर मुख द्धवारा बाहर निकाल दें। अब

पाञ को रख कर खड़े हो जायें। दोनों पैर थोड़े खुले रहें। दोनों हाथ कमर पर

रखकर श्वास को जोर से बाहर निकालते हए आगे की ओर जितना हो सके झुकें। भस्ञिका

के साथ यह क्रिया बार-बार करें, इससे नाक के भीतर का सब पानी बाहर निकल

जायेगा। थोड़ा बहुत रह भी जाये और दिन में कभी भी नाक से बाहर निकल जाये तो कुछ

चिन्ताजनक नहीं है।

नाक से पानी भीतर खींचने की यह क्रिया प्रारम्भ में उलझन जैसी लगेगी लेकिन

अभ्यास हो जाने पर बिल्कुल सरल बन जायेगा।



*लाभः* मस्तिष्क की ओर से एक प्रकार का विषैला रस नीचे की ओर बहता है। यह रस

कान में आये तो कान के रोग होते है, आदमी बहरा हो जाता है। यह रस आँखों की तरफ

जाये तो आँखों का तेज कम हो जाता है, चश्मे की जरुरत पड़ती है तथा अन्य रोग

होते है। यह रस गले की ओर जाये तो गले के रोग होते है।

नियमपूवर्क जलनेति करने से यह विषैला पदार्थ बाहर निकल जाता है। आँखों की रोशनी

बढ़ती है। चश्मे की जरुरत नहीं पड़ती। चश्मा हो भी तो धीरे-धीरे नम्बर कम

होते-होते छूट जाता है। श्वसोच्छोवास का मार्ग साफ हो जाता है। मस्तिष्क में

ताजगी रहती है।जुकाम-सर्दी होने के अवसर कम हो जाते है। जलनेति की क्रिया

करने से दमा, टी.बी., खाँसी, नकसीर, बहरापन आदि छोटी-मोटी 1500 बीमीरियाँ दूर

होती है। जलनेति करने वाले को बहत लाभ होते है। चित मे प्रसन्नता बनी रहती है।

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